सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को न्याय की देवी की नई प्रतिमा बनायीं गई है। न्याय की देवी की मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और उनके एक हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। ताकि यह संदेश दिया जा सके कि देश में कानून अंधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में जजों के पुस्तकालय में ये मूर्ति लगाई गई है।
क्या है आखों पर पट्टी और हाथ में तलवार का मतलब?
आंखों पर पट्टी कानून के समक्ष समानता को दर्शाती है, जिसका मतलब ये है कि अदालतें अपने सामने आने वाले लोगों की संपत्ति, शक्ति या स्थिति के अन्य चिह्नों को नहीं देख सकती हैं, जबकि तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति का प्रतीक है।
औपनिवेशिक विरासत को छोड़ना होगा पीछे
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई नई मूर्ति की आँखों से पटी को हटाकर उनकी आँखे खोल दी गयी है ऐसी मूर्ति बनायीं गयी है और तलवार की जगह संविधान को बाएं हाथ में रखा गया है। इस कदम को औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है, ठीक उसी तरह जैसे भारतीय दंड संहिता जैसे औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानूनों को भारतीय न्याय संहिता से बदलकर किया गया था।
कानून कभी अंधा नहीं होता
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का मानना यह है कि भारत को ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़ना चाहिए और कानून कभी अंधा नहीं होता, यह सभी को समान रूप से देखता है। कानून की नज़र में सब सामान है और होने भी चाहिए इसलिए, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्याय की देवी का रूप बदला जाना चाहिए। जो की बहुत बड़ा और अहम् फैसला है।
संविधान के अनुसार होता है न्याय
उन्होंने कहा कि मूर्ति के एक हाथ में संविधान होना चाहिए न कि तलवार, ताकि देश को यह संदेश जाए कि वह संविधान के अनुसार न्याय किया जाता है। ताकि कोई न्याय पर ज्यादा सवाल न उठा सके।
तलवार और तराजू का क्या है अर्थ?
तलवार और तराजू हिंसा का प्रतीक है, लेकिन न्यायालय संवैधानिक कानूनों के अनुसार न्याय करते हैं।सूत्र ने बताया कि न्याय के तराजू को दाहिने हाथ में इसलिए रखा गया है क्योंकि यह समाज में संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है और यह विचार कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले न्यायालय दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को तौलता है।