उद्योगपति रतन टाटा का 9 अक्टूबर, 2024 को मुंबई में निधन हो गया है। उन्होंने ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। टाटा समूह की ओर से उनके निधन की पुष्टी की गई है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताया है। इतने अच्छे इंसान आज हमारे साथ नहीं रहे वह हमेशा के लिए हमारा साथ छोड़ कर चले गए।
उन्होंने समूह का हिस्सा होते हुए समूह को नई बुलंदियों तक पहुंचाया है । साल 2000 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण और साल 2008 में उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके द्वारा नैनो कार से लेकर जगुआर तक लिए गए निर्णयों ने लोगों का नजरिया बदला। इस लेख में आईए हम उनके जीवन के सफर में इस कहानी के जरिये उनके जीवन में चलते है और बहुत सी अनसुनी बातें जानते है।
जन्म - 28 दिसंबर 1937
मृत्यु - 9 अक्टूबर, 2024
आयु - 86 वर्ष
शिक्षा - कॉर्नेल विश्वविद्यालय हार्वर्ड बिजनेस स्कूल
परिवार - नवल टाटा ( पिता )
सूनी कमिसारीट ( माता )
पेशा - टाटा संस और टाटा समूह की पूर्व अध्यक्ष परोपकारी इन्वेस्टर
शीर्षक - टाटा संस और टाटा समूह के मानद अध्यक्ष
पूर्ववर्ती - जेआरडी टाटा
उत्तराधिकारी - साइरस मिस्त्री (2012) नटराजन चंद्रशेखरन (2017-वर्तमान)
पुरस्कार - पद्म विभूषण (2008) पद्म भूषण (2000)
मूल्य - रु.3800 करोड़ रुपये
प्रसिद्ध उद्धरण - “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता। मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं।” "शक्ति और धन मेरे दो मुख्य हित नहीं हैं।"
रतन टाटा का जन्म 28 दिसम्बर 1937 को बम्बई, ब्रिटिश भारत (वर्तमान मुंबई) में जन्मे थे , नवल टाटा और सूनी कमिसारिएट के पुत्र थे।
रतन टाटा पारसी थे. ये धर्म अपने आपमें कई मामलों में खास और विशेष है. इस धर्म के लोग भाईचारे के साथ इस देश में ऐसे घुलमिल गए कि लगा कि नहीं कि कभी वो बाहर से आए थे। उनकी एक खास बात ये थी की वह कभी धर्म में भेदभाव नहीं करते थे वह सबको सामान नज़र से ही देखते थे उनके लिए सब एक ही है कोई धर्म अलग नहीं है वह यूनिटी में भरोसा रखते थे।
रतन टाटा जब 10 वर्ष के थे, तब वे अलग हो गये। इसके बाद उन्हें उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने जे. एन. पेटिट पारसी अनाथालय से उन्हें गोद लिया। टाटा का पालन-पोषण उनके सौतेले भाई नोएल टाटा (नवल टाटा और सिमोन टाटा के पुत्र) के साथ किया।
रतन टाटा- टाटा संस के अध्यक्ष कब बने थे आइये जानते है।
जब जेआरडी टाटा ने 1991 में टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था ,तो उन्होंने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्हें कई कंपनियों के प्रमुखों से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था जिन्होंने अपनी-अपनी कंपनियों में दशकों तक काम किया था। टाटा ने सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करके उनकी जगह लेना शुरू कर दिया। उन्होंने प्रत्येक कंपनी के लिए समूह कार्यालय में रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया। उनके नेतृत्व में टाटा संस की अतिव्यापी कंपनियों को एक समन्वित इकाई के रूप में सुव्यवस्थित किया गया।
रतन टाटा की कितनी कंपनियां हैं?
रतन टाटा, जिनकी मृत्यु 86 वर्ष की आयु में हुई, भारत के सबसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने वाले व्यापारिक नेताओं में से एक थे। इस दिग्गज ने दो दशकों से भी अधिक समय तक टाटा समूह का नेतृत्व किया - जिसे "नमक से लेकर सॉफ्टवेयर" तक 100 से अधिक कंपनियों के समूह के रूप में जाना जाता है, जिसमें लगभग 660,000 लोग कार्यरत हैं। उनके साथ काम करने वाले सारे लोग उनका परिवार था वह सबको सपना परिवार ही मानते थे। उनके किसी भी कर्मचारी को उनके साथ काम करने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई सब बहुत ही ख़ुशी से मिलकर पूरी ईमानदारी से अपना अपना काम करते है।
टाटा रतन की मृत्यु कैसे हुई?
उम्र संबंधी समस्याओं और रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए रतन टाटा को सोमवार (7 अक्टूबर, 2024) को दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
रतन टाटा की शादी क्यों नहीं हुई?
2011 में CNN को दिए गए एक साक्षात्कार में रतन टाटा ने खुलासा किया कि डर और विभिन्न परिस्थितियों के कारण उन्हें कई बार शादी करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा। "मैं चार बार शादी करने के बहुत करीब पहुँच गया था, लेकिन हर बार मैं डर के कारण या किसी न किसी कारण से पीछे हट गया। और मैं कभी शादी नहीं कर पाया।
रतन टाटा एक परोपकारी है?
रतन टाटा, जाने-माने उद्योगपति और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष, एक समर्पित परोपकारी व्यक्ति थे और सामाजिक कार्यों, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सबसे महत्वपूर्ण रूप से ग्रामीण विकास के लिए प्रतिबद्ध थे। वह एक उत्साही जानवरो से प्यार करने वाले इंसान थे और आवारा कुत्तों की बहुत देखभाल करते थे जानवरों के लिए रतन टाटा ने मुंबई में टाटा ट्रस्ट्स स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल भी खोला था।
रूबी खान नामक एक एचआर पेशेवर ने हाल ही में मुंबई के ताजमहल होटल से जुड़ी एक दिलचस्प बात बताई है। ताज महल होटल में रुकने के दौरान होटल के प्रवेश द्वार पर एक कुत्ते को शांति से सोते हुए देखा वह हैरान रह गईं थीं। कुत्ते की मौजूदगी से रूबी खान की जिज्ञासा जगी। इस बारे में जब उन्होंने कर्मचारियों से पूछताछ की तो उन्हें बताया गया कि कुत्ता जन्म से ही होटल के परिसर में रह रहा है। कर्मचारियों ने बताया कि रतन टाटा ने होटल परिसर में प्रवेश करने वाले जानवरों के साथ अच्छा व्यवहार करने के सख्त निर्देश दे रखे हैं। ऐसे थे रतन टाटा जिनको जानवर तक का दुःख नहीं देखा जाता था।